Header Ads Widget

Latest

6/recent/ticker-posts

Up Board Class 10th Biology Jaiv Prakram ( जैव प्रक्रम ) श्वसन || श्वसन क्या है- Jaiv Prakram class 10th in hindi

  



                                             B. श्वसन


एक जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण अभिक्रिया है, जिसमें विशेष मानव अंग आवरण से ऑक्सीजन (O2) को ग्रहण करके उसे शरीर की कोशिकाओं तक चाते हैं। अतः श्वसन वह क्रिया है, जिसमें कोशिका में कार्बनिक यौगिकों (प्रायः कोस) का ऑक्सीकरण होता है।


क्रिया में CO2 तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा को विशेष ATP अणुओं विभवीय ऊर्जा के रूप में संचित किया जाता है। यह ऊर्जा मानव शरीर की भिन्न उपापचयी क्रियाओं द्वारा उपयोग में लाई जाती है। इस क्रिया में जीवित शिकाओं में कार्बनिक भोज्य पदार्थों का जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण होता है। क्रिया एन्जाइमों की सहायता से सामान्य ताप पर होती है। कार्बनिक पदार्थों में चित रासायनिक ऊर्जा गतिज ऊर्जा के रूप में मुक्त होती है। यह मुक्त ऊर्जा  में संचित होती है, जोकि जैविक क्रियाओं के काम आती है।


C6H12O6 + 602 - → 6CO2 + 6H2O + 38 ATP


ऑक्सीजन की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के आधार पर श्वसन दो प्रकार का होता है ऑक्सीश्वसन यह क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती है। इसमें ग्लूकोस का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है तथा CO2 व जल बनता है। इस प्रक्रिया के दो चरण होते हैं; ग्लाइकोलाइसिस व क्रेन्स चक्र। ग्लाइकोलाइसिस क्रिया कोशिकाद्रव्य में सम्पन्न होती है। इससे 2ATP अणुओं का शुद्ध लाभ होता है। इसका अन्तिम उत्पाद, पाइरुविक अम्ल माइटोकॉण्ड्रिया में जाकर क्रेब्स चक्र में प्रवेश करता है, जहाँ इसका वायवीय ऑक्सीकरण होता है। एक अणु ग्लूकोस के पूर्ण ऑक्सीकरण से 38 ATP अणु बनते हैं। जिनसे ऊर्जा 673 किलो कैलोरी प्राप्त होती है।


अनॉक्सीश्वसन यह क्रिया ऑक्सीजन के अभाव में होती है। इसमें ग्लूकोस का पूर्ण ऑक्सीकरण नहीं होता है तथा एल्कोहॉल (C2H5OH) व CO2, आदि बनते हैं। एक अणु ग्लूकोस से 2 ATP अणु प्राप्त होते हैं। अनॉक्सी श्वसन का अन्तिम उत्पाद एथिल एल्कोहॉल होता है व ऊर्जा 27 किलो कैलोरी प्राप्त होती है।


-कभी ऑक्सीजन के अभाव में, हमारी पेशी कोशिकाओं में पाइरुवेट के लण्डन के लिए दूसरे पथ अपनाए जाते हैं। यहाँ पाइरुवेट एक तीन कार्बन वाले


अणु, लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है, जिसके कारण पेशियों में क्रेम्प हो. हैं। अतः श्वसन के इस सम्पूर्ण प्रक्रम को निम्न रेखाचित्र द्वारा संक्षेप में प्रदर्शित




ATP से एक फॉस्फेट बन्ध के टूटने से 7.6 किलो कैलोरी ऊर्जा निकलती है तथा (एडिनोसीन डाइफॉस्फेट) बनता है। ATP कोशिका में ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत यह ऊर्जा की मुद्रा भी कहलाता है। ATP संश्लेषण का मुख्य स्थान माइट्रोकॉण्डि ATP विभिन्न कोशिकीय क्रियाओं; जैसे- कोशिका विभाजन, सक्रिय परिवहन जीवद्रव्य गति के लिए आवश्यक है।






श्वसन प्रक्रिया 


श्वसन प्रक्रिया को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है


(i) बाह्य श्वसन बाह्य श्वसन के लिए सभी कशेरुकी जन्तुओं (सरीसृप, प स्तनी) में बाह्य श्वसनांग (Respiratory organs); जैसे-मेंढक में त्वचा, में गलफड़े, मनुष्य में फेफड़े, आदि होते हैं।


बाह्य श्वसन को अध्ययन की सुगमता के लिए निम्नलिखित पदों में विभक्त जा सकता है


(a) श्वासोच्छ्वास वायुमण्डल से श्वसनांगों द्वारा शुद्ध वायु (O2) को ग्रहण तथा अशुद्ध वायु (CO2) को बाहर निकालने अर्थात् बहिःगमन (Disch की प्रक्रिया को श्वासोच्छ्वास कहते हैं। श्वास अंदर लेना अंतःश्वस बाहर छोड़ना निःश्वसन कहलाता है।


(b) गैसीय विनिमय गैसीय विनिमय सामान्य विसरण (Diffusion) द्वारा ह पादपों में यह कार्य रन्ध्र द्वारा, जबकि मानव में यह कार्य फेफड़ों द्वारा होता है। फेफड़ों के वायु कोषों (Alveoli) में उपस्थित वायु से ऑ रुधिर कोशिकाओं में तथा रुधिर कोशिकाओं से कार्बन डाइऑक्साइ कोषों में विसरित हो जाती है।


(ii) आंतरिक श्वसन रुधिर केशिकाओं व ऊतकों के मध्य गैसीय विनिमय ही अ श्वसन (कोशिकीय श्वसन) कहलाता है।


अतः कोशिकाओं में ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोस का जैव-रासायनिक ऑक् कोशिकीय श्वसन कहलाता है। यह मुख्यतया कोशिकाद्रव्य तथा माइटोकॉन्ड्रिया होता है।




पादपों में श्वसन


पादपों में श्वसन के लिए गैसों का आदान-प्रदान रन्ध्रों द्वारा होता है। यहाँ वायवीय डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन का आदान-प्रदान विसरण द्वारा होता है। विस दिशा पर्यावरण अवस्थाओं तथा पादप की आवश्यकता पर निर्भर करती है। जब कोई प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया नहीं हो रही होती है, तो CO2 का निष्कास‍ ग्लूकोस O2 का ग्रहण करना ही मुख्य आदान-प्रदान क्रिया है। दिन में, श्वसन के दौरा P2, आदि CO2 प्रकाश-संश्लेषण में प्रयुक्त हो जाती है।


जन्तुओं में श्वसन


जलीय जीवों में श्वसन जल में विलेय ऑक्सीजन को ग्रहण करना होता है। के द्वारा जल लेती है तथा बलपूर्वक इसे क्लोम तक पहुँचाती है, जह ऑक्सीजन रुधिर ले लेता है। स्थलीय जीव श्वसन के लिए वायुमण्डल की ओ का उपयोग करते हैं|


मनुष्य में श्वसन


मानव के प्रमुख श्वसनांग फेफड़े (Lungs) होते हैं। फेफड़ों तक बाहरी वायु के आवागमन हेतु नासिका, ग्रसनी, वायुनाल तथा इसकी शाखाएँ मिलकर एक जटिल वायु मार्ग (Air passage way) बनाती हैं। इस प्रकार ये सभी संवाही अंग तथा फेफड़े मिलकर मानव का श्वसन तन्त्र बनाते हैं। मनुष्य में सहायक श्वसन अंग नासिका, नासामार्ग, ग्रसनी तथा वायुनाल हैं।


नासिका तथा नासामार्ग चेहरे पर उपस्थित नासिका के मध्य में नासा पट या अन्तर नासा पट (Nasal septum) नासिका को दो भागों (बायाँ तथा दायाँ) में विभक्त करता है। इनमें उपस्थित रोम तथा श्लेष्म वायु को निस्यन्दित तथा नम करते हैं। दो भागों में बँटी नासागुहा पीछे घुमावदार नासामार्ग में खुलती है।


ग्रसनी नासामार्ग से वायु ग्रीवा में स्थित ग्रसनी में आती है। ग्रसनी में वायुनाल तथा बासनाल दोनों ही आकर खुलती हैं।


वायुनाल यह कण्ठ या स्वर यन्त्र तथा श्वासनली में बँटी होती है। श्वासनली यह 10-12 सेमी लम्बी तथा 1.5-2.5 सेमी व्यास की नली है। यह उपास्थिल छल्लेयुक्त होती है। श्वासनाल वक्षगुहा में जाकर दो श्वसनियों में विभक्त हो जाती है।


श्वसनिका मानव में दाँयी श्वसनिका तीन एवं बाँयी दो भागों में विभक्त हो जाती है। श्वसनिकाएँ कूपिका वाहिनियों (Alveolar ducts) में विभक्त हो जाती हैं। प्रत्येक पिका वाहिनी अपने छोर पर स्थित कूपिका में घुस जाती है। इसमें कई छोटे-छोटे वायुकोष (Alveolar sacs) उपस्थित होते हैं। प्रत्येक वायुकोष में दो या तीन छोटे-छोटे थैलीनुमा वायुकोष्ठक (Alveoli) खुलते हैं।


मानव में गैसीय विनिमय की क्रियाविधि अन्तःश्वसन की प्रक्रिया द्वारा शुद्ध O2 युक्त यु श्वसनागों द्वारा फेफड़ों में पहुँचती है।


इस प्रक्रिया में डायफ्राम एवं बाह्य अन्तरापर्शुक पेशियाँ संकुचित हो जाती हैं। फेफड़ों में गैसीय विनिमय विसरण (Diffusion) द्वारा होता है। ऑक्सीजन वायु कोषों से कधिर केशिकाओं में विसरित हो जाती है। जिससे ऑक्सीहीमोग्लोबिन उत्पादित होता है और सम्पूर्ण शरीर में उसका परिवहन होता है। निःश्वसन में रुधिर से CO2 बायु कोषों में विसरित होकर नासाद्वार से बाहर निकल जाती है और डायफ्राम अपनी पूर्व स्थिति में आ जाता है।


वसन क्रिया में O2 का परिवहन हीमोग्लोबिन द्वारा होता है तथा CO2 का परिवहन कार्बोनेट के रूप में होता है। कुछ मात्रा में CO2 हीमोग्लोबिन तथा रुधिर प्लाज्मा द्वारा भी वहन की जाती है।


नोट:- दहन एक अनियन्त्रित रासायनिक ऑक्सीकरण की क्रिया है। यह क्रिया उच्च ताप पर होती है तथा इसमें उच्च ऊष्मा उत्पन्न होती है।


Post a Comment

0 Comments