जैव प्रक्रम की परिभाषा (Definition of Life Processes)
वे सभी प्रक्रियाएँ, जो जीव को जीवित बनाए रखने में सहायता प्रदान करती हैं, जैविक या जीवन प्रक्रियाएँ कहलाती हैं; जैसे-पोषण, श्वसन, उत्सर्जन, परिवहन, आदि। जीवों में होने वाली जैव-रासायनिक अभिक्रियाएँ अपचयी
(Catabolic) एवं उपचयी (Anabolic) प्रकार की होती हैं। पोषण, पाचन तथा श्वसन अपचयी, जबकि प्रकाश-संश्लेषण एक उपचयी क्रिया है।
नोट•शरीर के अन्तःवातावरण के रासायनिक संगठन को स्थिर एवं सन्तुलित बनाए रखने की प्रक्रिया समस्थैतिकता कहलाती है।
वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते हैं, जैव प्रक्रम कहलाते हैं।
A. पोषण (Nutrition)
सभी जीवों को जीवित रहने के लिए तथा शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। अतः जीवों द्वारा भोजन तथा अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं। भोजन में उपस्थित वे तत्व जो जीवों में वृद्धि, विकास, मरम्मत, प्रतिरक्षा हेतु आवश्यक होते हैं, पोषक तत्व (Nutrients) कहलाते हैं। अतः वह भोजन, जिसमें भोजन के सभी घटक (वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, प्रोटीन, खनिज लवण तथा जल) आवश्यक तथा सन्तुलित मात्रा में उपस्थित हों, सन्तुलित आहार कहलाता है।
नोट • मनुष्य में उपापचयी क्रियाओं के लिए विटामिन्स होते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं-जल में विलेय व वसा में विलेय।
• जल में विलेय विटामिन्स - B व C
• वसा में विलेय विटामिन्स - A, D, E व K
पोषण की विधियाँ
जीवों में पोषण प्राप्त करने की अनेक विधियाँ पाई जाती हैं। इन्हें दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है; स्वपोषी एवं विषमपोषी (परपोषी) पोषण। कुछ जीव (जैसे-पादप व जीवाणु) सरल अकार्बनिक तत्वों (जल एवं CO2) द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। इस प्रकार प्राप्त पोषण, स्वपोषी पोषण कहलाता है। जबकि अन्य जीव (जैसे-जन्तु, कुछ जीवाणु व कवक) जटिल कार्बनिक तत्वों (जैसे-कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन) को सरल तत्वों में तोड़कर एवं स्वांगीकृत करके पोषण प्राप्त करते हैं। यह विषमपोषी (परपोषी) पोषण कहलाता है। इस कार्य हेतु ये जीव जैव-उत्प्रेरकों का उपयोग करते हैं, जिन्हें एन्जाइम कहते हैं।
1. स्वपोषी पोषण
यह प्रक्रम स्वपोषी जीवों में पाया जाता है, जो दो प्रकार का होता है (i) रसायन-स्वपोषी इसमें प्रकाश की अनुपस्थिति में रसायन-संश्लेषी जीवाणु अपना भोजन निर्मित करते हैं। भोजन के संश्लेषण के लिए कुछ जीवाणु अकार्बनिक पदार्थों के जैविक ऑक्सीकरण से प्राप्त ऊर्जा को ही प्रकाश ऊर्जा के स्थान पर प्रयोग करते हैं। अतः यह क्रिया रसायन - संश्लेषण कहलाती है; जैसे-नाइट्रोसोमोनास, नाइट्रोसोकोकस, आदि जीवाणु। (ii) प्रकाश-स्वपोषी इसमें अधिकांशतया हरे पादप होते हैं, जो अपने भोजन का निर्माण स्वयं करते हैं। ये जड़ों द्वारा भूमि से विभिन्न खनिज पोषकों का अवशोषण करते हैं।
पादपों में पोषण: प्रकाश-संश्लेषण
ये अधिकांशतः हरे पादपों में होता है। प्रत्येक हरा पादप सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की सहायता से अपने भोजन का निर्माण करता है। पादपों द्वारा स्वयं भोजन बनाने की क्रिया प्रकाश-संश्लेषण कहलाती है। का हरा रंग पर्णहरिम
(Chlorophyll) की उपस्थिति के कारण होता है। पर्णहरिम उपस्थिति के कारण ही पादप सूर्य की प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप बदलकर कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं।
अतः प्रकाश-संश्लेषण को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है
'प्रकाश-संश्लेषण वह जैव-रासायनिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा सरल अकार्बर अमीब यौगिकों; जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल को प्रकाशीय ऊर्जा (सूर्य का प्रकाश) अंगुल पर्णहरिम की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोस) के रूप में बदल दिया जाता है।' भोज इसे निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है
इस क्रिया में ऑक्सीजन सह-उत्पाद के रूप में मुक्त होती है। यहाँ उत्पन्न कार्बोहाइ को पादपों में ऊर्जा की आवश्यकता अनुसार श्वसन में उपयोग कर लिया जाता है विक शेष ग्लूकोस को मण्ड के रूप में संचित कर लिया जाता है।
प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रम
प्रकाश-संश्लेषण में मुख्यतया तीन घटनाएँ होती हैं
(i) अवशोषण पर्णहरिम द्वारा सूर्य की प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण।
(ii) रूपान्तरण प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरण एवं जल (H2O) O2 एवं H+ में टूटना। अतः प्रकाश-संश्लेषण अभिक्रिया में मुक्त O2 का जल है।
(ii) अपचयन CO2 का कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित होना
प्रकाश-संश्लेषण का कार्य स्थल- - हरितलवक
पादपों में प्रकाश-संश्लेषण हरितलवक में होता है। ये सर्वाधिक संख्या में पत्तियों में प जाते हैं। ये सूक्ष्म हरे रंग की द्विझिल्लीय एवं पट्टलिकाओं से युक्त कोशिकांग है, जिन क्लोरोफिल पाया जाता है। इसके स्ट्रोमा में प्रकाश की अनुपस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण -अप्रकाशिक अभिक्रिया (कैल्विन चक्र) सम्पन्न होती है। इस अभिक्रिया में NADP बन है, जो NAD (निकोटिनामाइड एडिनीन) का फॉस्फेट रूप है।
पत्ती की अनुप्रस्थ काट
(i) पत्तियों की अनुप्रस्थ काट में मृदूतक कोशिकाओं की बनी सबसे बाहरी, ए कोशिकीय परत होती है, जिसे अधिचर्म या बाह्यत्वचा कहते हैं।
(ii) बाह्यत्वचा पर अतिसूक्ष्म छिद्र होते हैं, इन्हें रन्ध्र कहते हैं। प्रकाश-संश्लेषण के सम ये छिद्र खुल जाते हैं और इनके द्वारा गैसों का विनिमय होता है। प्रकाश-संश्लेषण के लिए CO2 की आवश्यकता न होने पर ये छिद्र बन्द हो जाते हैं।
(ii) रन्ध्रों में दो सेम के बीज के आकार की द्वार कोशिकाएँ पाई जाती हैं। कोशिकाओं के भीतर की भित्ति मोटी तथा बाहर की भित्ति पतली होती है।
नोट -प्रकाश-संश्लेषण द्वारा वायुमण्डल का शुद्धिकरण (O2 की मुक्ति) होता है, जिससे
. प्रदूषण में कमी आती है।
2.विषमपोषी पोषण
स्वपोषियों के विपरीत कुछ जीवधारी अपने भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं नहीं कर पाते हैं तथा भोजन के लिए अन्य जीवों या स्वपोषियों पर निर्भर होते हैं। ऐसे जीव परपोषी कहलाते हैं तथा पोषण की यह प्रक्रिया परपोषण कहलाती है।
परपोषी जीव निम्न प्रकार के होते हैं
(i) प्राणिसमभोजी (Holozoic)
इनमें सभी शाकाहारी, माँसाहारी एवं सर्वाहारी जीव आते हैं।
(ii) परजीवी (Parasites) वे जीव, जो दूसरे जीवों (जन्तु या पादप) के शरीर पर आश्रित रहकर एवं उन्हें मारे बिना अपना भोजन प्राप्त करते हैं, परजीवी कहलाते हैं; जैसे-फीताकृमि, अमरबेल, जोंक, खटमल, आदि।
(ii) मृतोपजीवी
(Saprozoic) वे जीव, जो मृत जीवों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं, मृतोपजीवी कहलाते हैं। ये जीव मृत जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल तत्वों में अपघटित कर पोषण प्राप्त करते हैं; जैसे- कवक, कुछ जीवाणु, यीस्ट, मशरूम, आदि।
अमीबा में पोषण
अमीबा में प्राणिसमभोजी प्रकार का अन्तः कोशिकीय पोषण पाया जाता है, जोकि अंगुलीनुमा प्रवर्धां स्यूडोपोडिया (कूटपादाभ) द्वारा होता है। यह जल के साथ आए भोजन कणों को कोशिका की सतह के द्वारा अन्तर्ग्रहित कर लेता है। तत्पश्चात् अपचित भोज्य कणों को कोशिका भित्ति द्वारा बहिःक्षेपित कर दिया जाता है।
मनुष्य में पोषण
भोजन के रूप में ग्रहण किए गए जटिल पदार्थों को शरीर द्वारा प्रयोग में लाए जाने योग्य उपयुक्त सरल पदार्थों के रूप में अपघटित करने की क्रिया, पाचन कहलाती है। इस क्रिया को करने के लिए मानव शरीर में एक सम्पूर्ण तन्त्र होता है, जिसे पाचन तन्त्र कहते हैं। इस पाचन तन्त्र में भोजन का पाचन विभिन्न प्रकार के पाचक विकरों या एन्जाइम्स (Digestiveenzymes) की सहायता से होता है। इन पाचक एन्जाइम्स का स्रावण इसी पाचन तन्त्र में उपस्थित पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands) करती हैं। अतः अध्ययन की सुविधा हेतु मानव में पाए जाने वाले पाचन तन्त्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है; आहारनाल व पाचक ग्रन्थियाँ ।
आहारनाल
• आहारनाल की लम्बाई लगभग 8-10 मीटर होती है। यह मुख्यतया मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रासनली, आमाशय, छोटी आँत तथा बड़ी आँत में विभक्त होती है।
मनुष्य की मुखगुहा में निम्नलिखित चार प्रकार के दाँत होते हैं
• वयस्क मनुष्य का दन्तसूत्र ।
(दन्तसूत्र में, । = कृन्तक, C = रदनक, Pm = अग्रचर्वणक एवं M = चर्वणक)
• शिशुओं में दूध के 20 दाँत होते हैं। इनमें अग्रचर्वणक का अभाव होता है। जिह्वा भोजन का स्वाद बताने तथा लार मिलाने में सहायक होती है।
• लार ग्रन्थियाँ मनुष्य में तीन जोड़ी (6) लार ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं, जो पृथक् लार वाहिनी द्वारा मुखगुहा में खुलती हैं। लार ग्रन्थियाँ लार का स्रावण करती हैं, जिसमें लाइसोजाइम व टायलिन या एमाइलेज नामक एन्जाइम पाए जाते हैं।
• ग्रसनी एवं ग्रसिका यह मुखगुहा का पिछला भाग है। इसका पृष्ठ भाग नासाग्रसनी तथा अधर भाग मुखग्रसनी कहलाता है। नासाग्रसनी घांटीद्वार (Glottis) द्वारा श्वासनली में खुलती है। ग्रासनली द्वार पर पत्ती के समान लटकी हुई उपास्थि (Cartilage) की बनी संरचना पाई जाती है, जो घांटीढापन या घांटीढक्कन (Epiglottis)
कहलाती है। भोजन निगलते समय घांटीढापन घांटीवार को ढक देता है, जिससे भोजन श्वासनाल में न जाकर ग्रासनली या ग्रसिका में ही जाता है। ग्रसिका एक सकुंचनशील, पेशीय एवं नलिकानुमा संरचना होती है, जो आमाशय से जुड़ी होती है। ·
• आमाशय यह J-आकार की थैलीनुमा संरचना है। इसे तीन भागों; ऊपरी भाग–जठरागमी (Cardiac region), मध्य भाग- बुध्नी (Fundic region) तथा अन्तिम भाग-जठरनिर्गमी (Pyloric region) में बाँटा जाता है। आमाशय में स्थित आमाशयिक या जठर ग्रन्थियों से जठर रस का स्रावण होता है। सम्पूर्ण आमाशय में जठर ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। यह HCI के स्रावण के कारण अम्लीय होता है।
• छोटी आँत यह मनुष्य में आहारनाल का सबसे संकरा तथा सबसे लम्बा भाग (6-7 मीटर) है। इसको आन्तरिक रचना के आधार पर ग्रहणी, मध्यान्त्र तथा क्षुद्रान्त्र या शेषान्त्र में बाँटा जाता है। ग्रहणी भाग अंग्रेजी के C या U-आकार का होता है। छोटी आँत के शेषान्त्र में रसांकुर पाए जाते हैं, जो आँत के अवशोषण तल को अत्यधिक बढ़ा देते हैं। अतः इसमें भोजन का पाचन तथा अवशोषण दोनों होता है।
• बड़ी आँत यह लगभग 1.5 मीटर लम्बी संरचना है। छोटी आँत, बड़ी आँत में एक थैले जैसे भाग में खुलती है, जिसका एक सिरा 7-10 सेमी लम्बी संकरी व बन्द नली के रूप में निकला रहता है। इसे कृमिरूपी परिशेषिका कहते हैं। बड़ी आँत तीन भागों; जैसे- सीकम, कोलन तथा मलाशय में बँटी होती है। इस भाग में पचे हुए भोजन तथा जल का अवशोषण होता है और साथ ही अपचित भोजन को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
नोट -सीकम से लगभग 7-10 सेमी लम्बी अन्धनाल जुड़ी रहती है, जिसे कृमिरूप परिशेषिका (Vermiform appendix) कहते हैं। मानव में यह अवशेषी अंग होता है। पाचक ग्रन्थियाँ
भोजन के पाचन की क्रियाविधि
जटिल व अघुलनशील खाद्य पदार्थों को भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं के द्वारा घुलनशील पदार्थों में बदलकर, इन्हें अवशोषण योग्य छोटे-छोटे सरल घटकों में तोड़ने की क्रिया को पाचन (Digestion) कहते हैं।
(i) अन्तर्ग्रहण इसमें भोजन को चबाना, आमाशय में भोजन की लुगदी बनना,आहारनाल में क्रमाकुंचन गति (पेशीय संकुचन) के कारण भोजन को आगे खिसकाना, आदि सम्मिलित हैं। क्रमाकुंचन गति स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के नियन्त्रण में एक प्रतिवर्ती प्रतिक्रिया के रूप में होती है।
(ii) पाचन इसके अन्तर्गत पाचक ग्रन्थियों द्वारा स्रावित रस के एन्जाइम्स जटिल अघुलनशील भोज्य पदार्थों को सरल घुलनशील इकाइयों में तोड़ देते हैं। (iii) अवशोषण प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, न्यूक्लिक अम्ल तथा न्यूक्लियोटाइड के अन्तिम उत्पादों का अवशोषण रसांकुर के भीतर उपस्थित रुधिर केशिकाओं में, जबकि वसा के अन्तिम उत्पाद का अवशोषण लसिका वाहिनियों द्वारा होता है। पचे हुए सरल खाद्य अणुओं का अवशोषण आहारनाल की छोटी आँत में होता है। वसा का पाचन मुख्य रूप से छोटी आँत में होता है।
(iv) स्वांगीकरण पचे हुए पदार्थ कोशिका के जीवद्रव्य में पहुँचने के बाद, उसी में विलीन हो जाते हैं। इसे स्वांगीकरण कहते हैं।
(v) मल विसर्जन पाचन समाप्त होने के पश्चात् आहारनाल में कुछ अपशिष्ट पदार्थ शेष रह जाते हैं, जिनका पाचन संपन्न नहीं हो पाता है। अतः इनका मानव शरीर से उत्सर्जन हो जाता है।
नोट- पाचन क्रिया भौतिक क्रिया भी व रासायनिक भी। भौतिक क्रिया के अन्तर्गत चबाना, क्रमाकुंचन, भोजन की लुगदी बनाना, आदि होते हैं, जबकि रासायनिक क्रिया में विभिन्न एन्जाइमों के द्वारा भोजन का अपचयन होता है।
0 Comments