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Up Board Class -10 Civics (लोकतांत्रिक राजनीति) Chapter-2 संघवाद लघु उत्तरीय प्रश्न ?- sanghavaad | Up board exam

 



लघु उत्तरीय प्रश्न ?


प्रश्न 1.1992 ई. के संविधान संशोधन द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्था में विकेंद्रीकरण को प्रभावी बनाने के लिए क्या प्रयास किए गए हैं?


उत्तर - 1992 ई. के संविधान संशोधन के द्वारा विकेन्द्रीकरण हेतु निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं-

1. हर राज्य में पंचायत व नगरपालिका चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग नामक स्वतंत्र संस्था का गठन किया गया है।

2.राज्य सरकारों को अपने राजस्व और अधिकारों का कुछ हिस्सा स्थानीय स्वशासी निकायों को देना पड़ता है। सत्ता में भागीदारी की प्रकृति हर राज्य में अलग-अलग है।

3. स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनाव नियमित रूप से कराना संवैधानिक बाध्यता है।

4. निर्वाचित स्वशासी निकायों के सदस्य तथा पदाधिकारियों के पदों में

5.अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों/अन्य पिछड़ी जातियों के लोगों के लिए सीटें आरक्षित हैं।

कम-से-कम एक तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।


 प्रश्न 2. ग्राम पंचायत के गठन को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर—प्रत्येक गाँव में एक ग्राम पंचायत होती है। ग्राम पंचायत एक तरह की परिषद् है जिसमें कई सदस्य और एक अध्यक्ष होता है। सदस्य वार्डों से चुने जाते हैं और उन्हें सामान्यतया पंच कहा जाता है। ग्राम पंचायत के अध्यक्ष को प्रधान कहते हैं। इनका चुनाव गाँव अथवा वार्ड में रहने वाले सभी वयस्क लोग मतदान के जरिए करते हैं। यह पूरे गाँव के लिए फैसला लेनेवाली संस्था है। पंचायतों का काम ग्राम सभा की देख-रेख में चलता है। गाँव के सभी मतदाता इसके सदस्य होते हैं। इसे ग्राम पंचायत का बजट पास करने और इसके काम-काज की समीक्षा के लिए साल में कम-से-कम दो या तीन बार बैठक करनी होती है। 


प्रश्न 3. भारत में भाषा के आधार पर राज्यों का निर्माण क्यों किया गया?


उत्तर—भारत में भाषा के आधार पर व्यापक विविधता पायी जाती है। भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन किया गया। नए राज्यों को बनाने के लिए सन् 1950 ई. के दशक में भारत के कई पुराने राज्यों की सीमाएँ परिवर्तित की गयीं। इस परिवर्तन का उद्देश्य एक भाषा बोलने वालों को एक राज्य की सीमा में लाना था। कुछ अन्य राज्यों का गठन सांस्कृतिक-भौगोलिक आधार पर किया गया। नगालैण्ड, उत्तराखण्ड और झारखण्ड ऐसे राज्यों में शामिल हैं। भाषा के आधार पर राज्यों का गठन करते समय राजनेताओं के मन में यह संशय था कि ऐसा करने से कहीं देश टूट न जाए। किन्तु राज्य पुनर्गठन के बाद इस बात का अनुभव के आधार पर सत्यापन हुआ कि देश की एकता सुदृढ़ हुई है। सरकार और शासन का संचालन पहले की तुलना में अधिक सुविधाजनक हो गया है।


प्रश्न 4 देश में स्थानीय सरकारों के महत्त्व का वर्णन कीजिए। 


 उत्तर- केन्द्र व राज्य सरकारों से शक्तियों का स्थानान्तरण जब स्थानीय

सरकारों को दिया जाता है तो इसे सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहते हैं। केन्द्र व राज्यों के बाद तीसरे स्तर को स्थानीय शासन कहा जाता है। स्थानीय शासन का महत्त्व

इस प्रकार है-

1. स्थानीय स्तर पर लोगों को फैसलों में सीधे भागीदार बनाना भी संभव हो जाता है। इससे लोकतांत्रिक भागीदारी की आदत पड़ती है।

2. अनेक समस्याओं का निपटारा स्थानीय स्तर पर ही बढ़िया ढंग से हो सकता है क्योंकि लोगों को अपने इलाके की समस्याओं की बेहतर समझ होती है।

3. लोगों को इस बात की भी जानकारी होती है कि पैसा कहाँ खर्च किया जाए और चीजों का अधिक कुशलता से उपयोग किस तरह किया जा सकता है। इस तरह स्थानीय सरकारों की स्थापना स्वशासन के लोकतांत्रिक सिद्धान्त को यथार्थ बनाने का सबसे अच्छा तरीका है।


प्रश्न 5.भारत के संविधान में केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किस तरह किया गया है?


उत्तर-भारत के संविधान में केन्द्र और राज्य सरकारों के मध्य विधायी अधिकारों का विभाजन तीन सूचियों में किया गया है, जिनका विवरण इस प्रकार है—

1. संघ सूची - इसमें प्रतिरक्षा, विदेश, बैंकिंग, संचार, मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के विषय हैं। इन पर केंद्र सरकार कानून बनाती है।

2. राज्य सूची -इसमें पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि, सिंचाई जैसे प्रांतीय महत्त्व के विषय आते हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकार को है।

3. समवर्ती सूची- इसमें शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह जैसे विषय शामिल हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों को है। लेकिन जब दोनों के कानूनों में टकराव हो तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया कानून ही मान्य होता है।

4. अवशिष्ट - अवशिष्ट विषयों की सूची में वे विषय रखे गए जो तीनों सूचियों में शामिल नहीं थे या जो नए विषय उभरे हैं। इन पर केंद्र सरकार कानून बनाती है।


प्रश्न 6.संघात्मक व्यवस्था में 'न्यायपालिका की भूमिका' का वर्णन कीजिए।


उत्तर—संघात्मक व्यवस्था में न्यायपालिका की भूमिका- संघात्मक सरकार का यह एक अनिवार्य तत्त्व है। केन्द्र व प्रान्तों में शक्तियों का विभाजन प्रायः इस आधार पर होता है कि जो विषय सारे देश से संबंधित होते हैं वे केन्द्रीय सरकार को सौंप दिए जाते हैं तथा जो स्थानीय महत्त्व के होते हैं वे प्रान्तीय सरकारों को सौंप दिए जाते हैं परंतु कई बार केन्द्र व राज्यों में मतभेद उत्पन्न हो जाता है। संघात्मक शासन में राज्यों के आपसी तनाव के कारण गृहयुद्ध छिड़ जाने की संभावना रहती है। इस संभावना को एक स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका दूर करती है। संविधान की व्याख्या करने तथा उसकी रक्षा करने की शक्ति भी न्यायपालिका में निहित रखी है। न्यायपालिका केन्द्र तथा प्रान्तों के उन कानूनों को अवैध घोषित कर सकती है जो संविधान के विरुद्ध होते हैं।





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