Header Ads Widget

Latest

6/recent/ticker-posts

जैव प्रक्रम ( विज्ञान ) subject Questions and Answer up board Class 10th Science - Jaiv Prakram विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

 




विस्तृत उत्तरीय प्रश्न




प्रश्न 1. श्वसन की परिभाषा लिखिए। मनुष्य के फेफड़ों की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।(2012)

अथवा श्वसन किसे कहते हैं? मनुष्य के श्वसन अंगों का निम्नांकित चित्र बनाकर उनके कार्यों का वर्णन कीजिए।

(2013)


उत्तर- जैविक कार्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा कार्बनिक भोज्य पदार्थों के जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। कोशिकाओं के इस जैविक प्रक्रम को श्वसन कहते हैं। मनुष्य में श्वसनांग नासिका, नासामार्ग, कण्ठ या स्वरयन्त्र या ग्रसनी, श्वास नलिका एवं फेफड़े (मुख्य श्वसन अंग) होते हैं। 

(i) नासिका एवं नासामार्ग चेहरे पर नासिका, दो बाह्य नासाछिद्रों से बाहरखुलती है। नासिका नासागुहा में खुलती है तथा यह गुहा पीछे घुमावदार, टेढ़े-मेढ़े मार्ग, नासामार्ग में खुलती है। नासामार्ग सीलिया युक्त श्लेष्मक कला से ढका रहता है। इसकी कोशिकाएँ श्लेष्म स्रावित करती हैं। नासामार्ग पीछे ग्रसनी (Pharynx) में खुलता है। यहाँ उपस्थित रोम तथा श्लेष्मा द्वारा वायु का निस्यन्दन होता है।


(ii) ग्रसनी नासामार्ग से वायु गले में स्थित ग्रसनी में आती है। ग्रसनी में वायुनाल तथा ग्रासनाल दोनों खुलती हैं। वायुनाल के छिद्र को घांटीद्वार (Glottis) कहते हैं। इस पर एक ढक्कन के समान संरचना पाई जाती है। इस ढक्कननुमा संरचना को घांटीढापन (Epiglottis) कहते हैं। यह भोजन करते समय भोजन के कणों को वायुनाल में जाने से रोकता है।


(iii) वायुनाल यह 10-12 सेमी लम्बी तथा 1.5-2.5 सेमी व्यास की उपास्थिल छल्लेनुमा नली होती है। यह निम्न दो भागों में बँटी होती हैं

(a) कण्ठ या स्वर यन्त्र यह वायुनाल का अगला बक्सेनुमा भाग है, जो उपास्थि की बनी तीन प्रकार की चार प्लेटों से मिलकर बना होता है। इसकी गुहा को कण्ठ कोष कहते हैं। कण्ठ कोष में दो जोड़ी वाक् रज्जु (Vocal cords) होते हैं। इन वाक् रज्जुओं में कम्पन्न से ही ध्वनि उत्पन्न होती है। इस कारण इसे ध्वनि उत्पादक अंग भी कहते हैं। हमारे गले में कण्ठ (Larynx) की उपास्थि ही उभार के रूप में होती है। इसे टेंटुआ (Adam's apple) भी कहते हैं।



(b) श्वासनली यह गर्दन की पूरी लम्बाई में फैली होती है। इसका कुछ भाग वक्ष गुहा में भी पहुँचता है। इसकी दीवार पतली, लचीली तथा ‘C' आकार की उपास्थि से निर्मित 16-20 अधूरे छल्लों से बनी होती है। ये छल्ले श्वासनली (Trachea ) में वायु न होने पर इसे पिचकने से रोकते हैं। श्वासनली वक्ष गुहा में आकर दो शाखाओं, श्वसनियों (Bronchi) में विभाजित हो जाती है। प्रत्येक श्वसनी अपनी तरफ के फेफड़े में प्रवेश करने के पश्चात् अनेक छोटी शाखाओं, श्वसनिकाओं (Bronchioles) में विभाजित हो जाती है। प्रत्येक श्वसनिका अन्त में फुफ्फुस के वायुकोषों (Alveoli) में समाप्त हो जाती है। इस प्रकार श्वास के समय ली गई वायु नासिका से वायुकोषों तक पहुँचती है।


(iv) फेफड़े या फुफ्फुस यह प्रमुख श्वसनांग है। यह वक्षगुहा में हृदय के पार्श्व में स्थित कोमल एवं लचीला अंग है। प्रत्येक फेफड़े के चारों ओर दोहरी झिल्लीयुक्त गुहा होती है, जिसे फुफ्फुस गुहा (Pleural cavity) कहते हैं। झिल्लियों को फुफ्फुसावरण कहते हैं एवं इसमें एक लसदार तरल पदार्थ होता है। ये फुफ्फुसावरण व तरल पदार्थ फेफड़ों की रक्षा करते हैं।


एक जोड़ी फेफड़े में दायाँ फेफड़ा बाएँ की अपेक्षा कुछ बड़ा होता है। यह अधूरी खाँच द्वारा तीन पिण्डों में विभक्त रहता है। बायाँ फेफड़ा एक ही अधूरी खाँच द्वारा दो पिण्डों में बँटा रहता है। इन खाँचों के अतिरिक्त फेफड़े की बाहरी सतह सपाट तथा चिकनी होती है। फेफड़े स्पंजी एवं असंख्य वायुकोषों में विभक्त रहते हैं।

प्रत्येक वायुकोष (Alveolus) शल्की उपकला से बना होता है, जिसकी बाहरी सतह पर रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है। यह फुफ्फुस धमनी के अत्यधिक शाखान्वित होने से बनता है।


रुधिर केशिकाओं एवं फेफड़ों की गुहा में स्थित वायु में 02 एवं CO2 विसरण द्वारा आदान-प्रदान होता है। 


प्रश्न 2. मनुष्य में श्वास लेने की क्रियाविधि का सचित्र वर्णन कीजिए। अथवा मनुष्य के श्वसन अंगों की विशेषताएँ लिखिए । श्वसन और दहन में अन्तर स्पष्ट कीजिए। मनुष्य में श्वासोच्छ्वास की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।(2008)

अथवा प्राणियों की श्वसन सतह में क्या विशेषताएँ होनी चाहिए? (2009)


 उत्तर-मनुष्य के श्वसन अंग की विशेषताएँ श्वसन अंगों में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं

(i) श्वसन सतह में रुधिर केशिकाओं का जाल जितना अधिक फैला होगा, वायु-विनिमय उतना ही सुचारु रूप से होगा।

(ii) श्वसन अंग का पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होना चाहिए।

(iii) श्वसन सतह नम और पतली होनी चाहिए।

(iv) श्वसन अंग तक कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन को लाने व ले

जाने का उचित प्रबन्ध होना चाहिए।

श्वसन और दहन में अन्तर



प्राणियों की श्वसन सतह की विशेषताएँ

जन्तुओं में श्वसन के प्रकारों एवं श्वसनांगों में बहुत अधिक विविधता पाई जाती है। कुछ जीवों में त्वचा द्वारा सरलतापूर्वक श्वसन संपन्न हो जाता है, तो कुछ में इस कार्य हेतु जटिल तन्त्र पाया जाता है। जीवों में प्रभावी गैसीय विनिमय हेतु श्वसन सतह में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए

(i) पतली भित्ति

(ii) तीव्र विसरण हेतु नमी

(iii) बड़ा पृष्ठीय क्षेत्रफल

(iv) रुधिर प्रवाह का आधिक्य ।


मनुष्य में श्वासोच्छ्वास क्रियाविधि

श्वासोच्छ्वास क्रियाविधि निम्नलिखित दो चरणों में पूर्ण होती हैं

(i) अन्तःश्वसन (Inspiration) इस क्रिया में शुद्ध वायु (O) श्वसनांगों द्वारा फेफड़ों में पहुँचती है। इस प्रक्रिया में डायफ्राम एवं बाह्य अन्तरापर्शुक (Internal intercostal) पेशियाँ संकुचित हो जाती हैं एवं डायफ्राम समतल (Flattened) हो जाता है। निचली पसलियाँ बाहर एवं ऊपर की ओर फैलती हैं तथा छाती फूल जाती है, जिसके फलस्वरूप वक्षगुहा (Thoracic cavity) का आयतन बढ़ जाता है और फेफड़ों में वायु का दाब कम हो जाता है। अन्ततया वायु नासारन्ध्र (Nostrils), कण्ठद्वार (Larynx) तथा श्वासनली (Trachea) में होते हुए फेफड़ों में भर जाती है।



(ii) निःश्वसन (Expiration) इस क्रिया में आन्तरिक अन्तरापर्शुक पेशियों तथा डायफ्राम में शिथिलन से ही पसलियाँ, स्टर्नम और डायफ्राम अपनी पूर्व स्थिति में आ जाते हैं, जिससे वक्ष गुहा का आयतन कम हो जाने से फेफड़ों का आयतन कम हो जाता है। फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है और वायु बाहर निकल जाती है।


Post a Comment

0 Comments