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civics class 10 chapter 5 | जन-संघर्ष और आंदोलन | महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न

                 



लघु उत्तरीय प्रश्न ?



प्रश्न 1.लोकतंत्र की स्थापना के लिए नेपाल में चलाए गए द्वितीय आंदोलन की चर्चा कीजिए।

अथवा नेपाल में लोकतंत्र शासन कैसे प्रारंभ हुआ? संक्षेप में उल्लेख कीजिए।


उत्तर—यह आंदोलन राजा ज्ञानेंद्र के विरुद्ध चलाया गया क्योंकि उसने 1990 के दशक में स्वीकार की गई सांविधिक राजतंत्र व्यवस्था को शाही आदेश से भंग कर दिया था। बोलिविया के फेडेकोर की तरह यहाँ भी सात राजनैतिक दलों का एक संयुक्त गठबंधन तैयार किया गया। आरंभ में की गई चार दिन के बंद की घोषणा ने अनिश्चितकालीन स्वरूप ले लिया। ज्ञानेन्द्र ने पुलिस और सैन्य बलों द्वारा इस विरोध को दबाना चाहा लेकिन सफल न हो पाया। इस आंदोलन समूह की माँग थी कि संसदीय लोकतंत्र को पुनः स्वीकार किया जाए, सर्वदलीय सरकार बने और संविधान सभा का गठन हो। 24 अप्रैल, 2006 को अंततः राजा ज्ञानेन्द्र को आंदोलनकारियों के समक्ष झुकना पड़ा। आंतरिक सरकार बनी और इसने कानून बनाकर राजा की अधिकांश शक्तियों को वापस ले लिया।


प्रश्न 2.दबाव समूह क्या हैं? ये किस प्रकार राजनीतिक दलों से भिन्न हैं? स्पष्ट कीजिए।

अथवा दबाव समूह और राजनीतिक दल में दो अंतर बताइए। दबाव समूह का एक उदाहरण दीजिए।


उत्तर- -लोगों का ऐसा समूह जो सरकार से अपनी माँगें मनवाने के लिए परोक्ष रूप से दबाव डालने वाले सशक्त संगठन को बनाता है, दबाव-समूह कहलाता है। इनका सीधा संबंध आंदोलन आदि चलाने के साथ होता है। दबाव समूह और राजनीतिक दल में अंतर :

(1) दबाव-समूह वर्गीय और सामूहिक हित के आधार पर भिन्न-भिन्न होते हैं जबकि राजनैतिक दल निर्वाचन आयोग के मानदंडों के अनुसार क्षेत्रीय या राष्ट्रीय राजनैतिक दल होते हैं।

(2) दबाव-समूह चुनाव के समय राजनैतिक दलों पर दबाव बनाते हैं। इनके कारण ही जनमत प्रभावित होता है।

(3) राजनैतिक दलों की किशोरावस्था ही दबाव समूह है।


प्रश्न 3. नेपाल के लोगों का संघर्ष पूरे विश्व के लोकतंत्र प्रेमियों के लिए किस प्रकार प्रेरणा का स्रोत बना? स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - नेपाल में 1990 के दशक में लोकतंत्र स्थापित हुआ, जिसमें राजा को औपचारिक रूप से प्रधान बनाया गया था। राजा वीरेन्द्र की हत्या के बाद राजा ज्ञानेंद्र ने 2005 में निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया, जिसके खिलाफ 2006 में आंदोलन उठ खड़ा हुआ। संसद की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने एक सेवन पार्टी एलायंस गठबंधन बनाया और नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में चार दिन के बंद का आह्वान किया। इस प्रतिरोध ने जल्दी ही अनियतकालीन बंद का रूप ले लिया। लोग लाखों की संख्या में सड़कों पर उतरने लगे। अंत में राजा को आंदोलनकारियों के आगे झुकना पड़ा और जनता की तीनों माँगों को मानने के लिए बाध्य होना पड़ा। पी.सी.ए. ने गिरिजा प्रसाद कोइराला को अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री चुना। संसद फिर से बहाल हो गई और संसद ने कई नए कानून पारित किए।

नेपाल के लोगों के संघर्ष ने राजा को झुकने के लिए बाध्य किया और राजा द्वारा नेपाल में लोकतंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया। इससे पूरे विश्व के लोकतंत्र प्रेमियों के लिए यह संदेश गया कि संघर्ष से लोकतांत्रिक व्यवस्था हासिल की जा सकती है। किसी भी तानाशाह सरकार को झुकाया जा सकता है।



प्रश्न 4.लोकतंत्र पर दबाव के कुछ नकारात्मक प्रभावों का समूह वर्णन करें।


उत्तर—( 1 ) लोकतंत्र के लिए हितकर नहीं होता- कुछ मानना है कि एक ही दल या वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले दबाव-समूह लोकतंत्र के लिए हितकर नहीं होते क्योंकि लोकतंत्र में किसी एक वर्ग की नहीं बल्कि सबके हितों की रक्षा होनी चाहिए। दबाव-समूह सत्ता का प्रयोग तो करना चाहते हैं लेकिन जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं।

( 2 ) जनता के प्रति जवाबदेह न होना-राजनीतिक दलों को चुनाव के समय जनता का सामना करना पड़ता है लेकिन ये समूह जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होते।

(3) पूँजीवादी लोगों का वर्चस्व होना- कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि दबाव-समूहों को बहुत कम लोगों का समर्थन प्राप्त हो लेकिन उनके पास धन ज्यादा हो और इसके बल पर यह सार्वजनिक बहस का रुख अपनी ओर मोड़ने में सफल हो जाए।


प्रश्न 5. जन-संघर्ष से किस प्रकार लोकतंत्र का विकास होता है?


उत्तर—लोकतंत्र का विकास जनसंघर्ष के जरिए होता है। यह संभव है कि कुछ महत्त्वपूर्ण फैसले आम सहमति से हो जाएँ और इनके पीछे किसी तरह का संघर्ष न हो। फिर भी, इसे अपवाद ही कहा जाएगा। लोकतंत्र की निर्णायक घड़ी अधिकतर वही होती है जब सत्ताधारियों और सत्ता में हिस्सेदारी चाहनेवालों के बीच संघर्ष होता है। ऐसी घड़ी तब आती है जब कोई देश लोकतांत्रिक दिशा में कदम बढ़ा रहा हो, उस देश में लोकतंत्र का विस्तार हो रहा हो अथवा वहाँ लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होने की प्रक्रिया में हों।


प्रश्न 6. हित-समूह क्या होता है? वह कब एक दबाव समूह बन जाता है?


उत्तर—प्रत्येक समाज में कृषक, पूँजीपति, भूमिपति, शिक्षक, सरकारी कर्मचारी तथा मजदूरों व अन्य व्यवसायियों के विभिन्न प्रकार के हित पाए जाते हैं। जब एक ही प्रकार के हित रखने वाले लोग कोई संगठित रूप धारण कर लेते हैं। तो उसे 'हित-समूह' कहा जाता है। ढिल्लो के अनुसार, 'साधारण शब्दों में, हित-समूह ऐसे लोगों का समुदाय है जिनमें परस्पर हितों की साझेदारी हो।” जब कोई हित-समूह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार से सहायता चाहने लगता है और विधानमंडल के सदस्यों को इस रूप में प्रभावित करने का प्रयत्न करने लगता है कि सामान्य कानूनों का निर्माण अथवा उनमें संशोधन करते समय उनके हितों को ध्यान में रखा जाए, तो वह दबाव समूह का रूप धारण कर लेता है। दबाव-समूह अपने सदस्यों के हितों को विकसित करने तथा उन्हें सुरक्षित रखने के लिए उन्हें आवश्यक सुविधाएँ प्रदान कराने तथा सरकार को उनके हितों के विरुद्ध कार्य करने से रोकने के लिए सरकार पर दबाव डालते रहते हैं। दबाव-समूह अपना काम करवाने के लिए विधायकों व सरकारी अधिकारियों पर उचित अथवा अनुचित साधनों द्वारा प्रभाव डालते हैं। इसी कारण दबाव-- व-समूहों को कई बार भ्रष्टाचार का केंद्र भी कहा जाता है


विभिन्न विद्वानों द्वारा दबाव समूह की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी गई हैं-


 1. सी.एच. ढिल्लो के अनुसार, “साधारण शब्दों में समान हित वाले व्यक्तियों के समूह को हित-समूह कहते हैं। जब वे अपने लाभ की प्राप्ति के लिए सरकारी सहायता प्राप्त करते हैं तो वे दबाव-गुटों का रूप धारण कर लेते हैं।” 


2. आमण्ड तथा पॉवेल के अनुसार, “हित-समूह से हमारा तात्पर्य ऐसे व्यक्तियों के से है जो किसी विशेष हित अथवा लाभ के लिए परस्पर मिले

समूह

हों और जिनमें उन हितों के संबंध में चेतना हो ।"


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