विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पोषण क्या है? पोषण की आवश्यकता क्यों पड़ती है? पोषण मुख्य प्रकारों का उल्लेख कीजिए। पाचन तथा पोषण में अन्त बताइए।
अथवा 'भोजन ऊर्जा का स्रोत है' कथन की पुष्टि कीजिए। अथवा क्या किसी जीव के लिए 'पोषण' आवश्यक है? विवेचना कीजिए। (NCERT Exemplar]
उत्तर-पोषण जीवों द्वारा भोजन तथा अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत् को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं। सभी जीवों को जीवित रहने के लि तथा शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं हेतु ऊर्जा की आवश्यक होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है।
पोषण के आधार पर जीव दो प्रकार के होते हैं
(i) स्वपोषी वे जीवधारी, जो प्रकाश या रासायनिक ऊर्जा का उपयोग कर अकार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन बनाते हैं। उदाहरण पादप, नील- हरित शैवाल, आदि।
(ii) परपोषी जो जीवधारी अपने भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं नहीं कर पाते हैं, बल्कि भोजन हेतु अन्य जीवों; जैसे- पादप या जन्तुओं पर निर्भर होते हैं, परपोषी कहलाते हैं; उदाहरण मानव, शेर, चील, जोंक, आदि। [2] पोषण या भोजन की आवश्यकता
(i) ऊर्जा की आपूर्ति विभिन्न जैविक कार्यों में व्यय होने वाली ऊर्जा की आपूर्ति भोजन के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप होती है। ऊर्जा उत्पादन हेतु मुख्यतया कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोस), वसा तथा कभी-कभी प्रोटीन का भी उपयोग होता है। इनसे मुक्त रासायनिक ऊर्जा ATP के रूप में संचित हो जाती है। ATP जैविक कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
(ii) शरीर की वृद्धि पचे हुए खाद्य पदार्थों का जीवद्रव्य द्वारा आत्मसात् कर लेना स्वांगीकरण कहलाता है। इससे जीवद्रव्य की मात्रा में वृद्धि होती है और जीवधारियों में भी वृद्धि होती है। प्रोटीन्स, खनिज लवण, विटामिन्स, आदि शरीर की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(iii) शरीर में टूट-फूट की मरम्मत भोजन के पोषक तत्व मुख्यतया प्रोटीन्स से शरीर में प्रतिदिन होने वाली टूट-फूट की मरम्मत होती है। खनिज लवण व विटामिन्स, मरम्मत क्रियाओं को प्रेरित करते हैं।
(iv) रोगों से रक्षा सन्तुलित भोजन स्वास्थ्यवर्धक होता है। यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। भोजन के अवयव; जैसे- प्रोटीन्स, विटामिन्स, खनिज लवण, आदि इस कार्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पोषक पदार्थ हैं। [3] पाचन और पोषण में अन्तर
पाचन
जटिल और अघुलनशील भोज्य पदार्थों को भौतिक और रासायनिक क्रियाओं द्वारा घुलनशील पदार्थों में बदलने की क्रिया को पाचन कहते हैं।
पोषण
जीवों द्वारा भोजन और अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं।
प्रश्न 2. स्वयंपोषी पोषण एवं विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है?(NCERT Intext, NCERT Exemplar, 2019)
स्वयंपोषी एवं विषमपोषी पोषण में अन्तर:-
स्वयंपोषी पोषण
वे जीव जो स्वयं अपने भोजन का निर्माण करते हैं, स्वपोषी कहलाते हैं तथा पोषण का यह प्रकार स्वपोषी या स्वयंपोषी पोषण कहलाता है।
ये दो प्रकार के होते हैं - रसायन संश्लेषी एवं प्रकाश-संश्लेषी।
स्वपोषी जीव पारितन्त्र में उत्पादक कहलाते हैं।
स्वपोषी जीव उपचय क्रियाओं द्वारा सरल तत्वों से जटिल यौगिकों का निर्माण करते हैं।
यह पोषण, विषमपोषी पोषण की तुलना में अधिक ऊर्जा दक्ष होता है।
नील-हरित, शैवाल, सल्फर एवं कुछ नाइट्रीकारक जीवाणु तथा सभी हरे पादप इसी श्रेणी में आते हैं।
विषमपोषी पोषण
वे जीव जो भोजन हेतु अन्य जीवों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आश्रित रहते हैं, विषमपोषी कहलाते हैं तथा पोषण का यह प्रकार विषमपोषी पोषण कहलाता है।
ये तीन प्रकार के होते हैं - परभक्षी, परजीवी तथा मृतोपजीवी ।
विषमपोषी जीव पारितन्त्र में उपभोक्ता या अपघटक कहलाते हैं।
विषमपोषी जीव अपचय क्रियाओं द्वारा जटिल तत्वों से सरल यौगिकों का निर्माण करते हैं।
यह पोषण, स्वपोषी पोषण की तुलना में कम ऊर्जा दक्ष होता है।
सभी जन्तु, कवक एवं अन्य जीवाणु इस श्रेणी में आते हैं।
प्रश्न 3. प्रकाश-संश्लेषण की परिभाषा लिखिए तथा इसकी रासायनिक अभिक्रिया का समीकरण बताइए।
(2016)
अथवा प्रकाश-संश्लेषण किसे कहते हैं? प्रकाश-संश्लेषण की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
(2011, 08, 05)
अथवा प्रकाश-संश्लेषण की परिभाषा लिखिए। प्रकाश-संश्लेषण की प्रकाशिक अभिक्रिया का वर्णन कीजिए।
(2012)
अथवा प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2011)
उत्तर- 'प्रकाश-संश्लेषण वह जैव-रासायनिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा सरल अकार्बनिक यौगिकों; जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल को प्रकाशीय ऊर्जा (सूर्य का प्रकाश) तथा पर्णहरिम की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोस) के रूप में बदल दिया जाता है।'। प्रकाश-संश्लेषण की क्रियाविधि प्रकाश-संश्लेषण एक जटिल अन्तः ऊष्मीय (Endothermal) उपचयी अभिक्रिया है।
यह क्रिया दो चरणों में पूरी होती हैं
1. प्रकाशिक अभिक्रिया या हिल अभिक्रिया प्रकाश अभिक्रिया का अध्ययन सर्वप्रथम रॉबर्ट हिल नामक वैज्ञानिक ने किया था। इसलिए इसे हिल अभिक्रिया भी कहते हैं। यह क्रिया हरितलवक के ग्रैना में सम्पन्न होती है। यह क्रिया निम्नलिखित पदों में पूर्ण होती हैं
(i) सूर्य का प्रकाश अवशोषित कर हरितलवकों के ग्रेनम में उपस्थित पर्णहरिम सक्रिय हो जाता है और ADP से ATP (एडीनोसीन ट्राइफॉस्फेट) का निर्माण होता है। ATP में प्रचुर मात्रा में ऊर्जा संचित हो जाती है।
(ii) जल का H'
आयनों तथा OH आयनों में प्रकाश अपघटन होता है।
4H2O- → 4(H* ) + 4(OH)
(iii) जल के प्रकाश अपघटन से उत्पन्न OH आयन परस्पर मिलकर जल और ऑक्सीजन बनाते हैं। ऑक्सीजन गैस के रूप में मुक्त होकर रन्ध्र (स्टोमेटा) द्वारा बाहर निकल जाती है।
संघनन
4(OH). → 2H2O + O2 1
(iv) जल के प्रकाश अपघटन से मुक्त H+ आयन से उत्तेजित इलेक्ट्रॉन्स निकलते हैं, जो इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण प्रणाली के द्वारा ऊर्जा को ATP के रूप में मुक्त करते हैं। इस क्रिया में H+ आयन NADP को
NADPH, में अपचयित करते हैं।
4(H* ) + 2NADP→ 2NADPH,
ADP + ~ P —ATP
प्रकाश की उपस्थिति में ADP से ATP के निर्माण की प्रक्रिया को फोटोफॉस्फोरिलेशन कहते हैं।
2. अप्रकाशिक अभिक्रिया या कैल्विन चक्र इस अभिक्रिया का अध्ययन सर्वप्रथम ब्लैकमैन नामक वैज्ञानिक ने किया था। इन क्रियाओं के लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है। इसे C - चक्र भी कहते हैं। यह अभिक्रिया हरितलवक के स्ट्रोमा में होती है। ये अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं (i) कुछ विशेष पदार्थों की उपस्थिति में वातावरण से प्राप्त CO2 का प्रकाशीय क्रियाओं से प्राप्त NADP. H, के H' से अवतरित होता है और PGAL (फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड) नामक पदार्थ बनता है।
इन क्रियाओं में निम्नलिखित अभिक्रियाएँ सम्मिलित हैं
(a) 5 कार्बन वाले यौगिक RuBP (रिबुलोस-1, 5-बाइफॉस्फेट) के साथ CO2 के अणु मिलकर 6 कार्बन युक्त अस्थायी यौगिक का निर्माण करते हैं
एन्जाइम
6RuBP + 6CO2 →6Cg यौगिक (अस्थायी)
H2O
(b) यह अस्थायी यौगिक शीघ्र ही अपचयित होकर 3 कार्बन वाले PGA (फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल)के दो अणु बना लेता है।
+H+
6C6 यौगिक- →12 (3PGA)
(c) PGA अणु और अधिक अपचयित होकर PGAL का निर्माण करते हैं। (d) PGAL के दो अणु मिलकर, अपचयन के फलस्वरूप पहले फॉस्फेट शर्करा का और बाद में शर्करा का निर्माण करते हैं।
(ii) PGAL के दो अणु मिलकर पहले एक अणु ग्लूकोस का निर्माण करते हैं।
2CgHO3 + 2(H)→ C6H12O6
(iii) ग्लूकोस से ही अन्य सभी खाद्य पदार्थों का निर्माण पादप के अन्दर ही हो जाता है।
(iv) कैल्विन चक्र में RuBP का पुनः निर्माण हो जाता है।
प्रश्न 4. प्रयोग द्वारा सिद्ध कीजिए कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए प्रकाश एवं कार्बन डाइऑक्साइड आवश्यक है।
(2018, 17, 15, 14, 13)
अथवा प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का क्या महत्त्व है? प्रयोग द्वारा स्पष्ट करें।
(2014)
उत्तर-प्रकाश की आवश्यकता का प्रदर्शन सर्वप्रथम एक गमले में लगे पादप को अन्धकार में 48-72 घण्टे रखकर स्टार्चविहीन कर लेते हैं।
एक पत्ती के दोनों ओर काला कागज क्लिप की सहायता से लगाकर पादप को 3-4 घण्टे के लिए प्रकाश में रख देते हैं। फिर पत्ती को तोड़कर आयोडीन का परीक्षण करते हैं।
पत्ती का वह भाग, जो काले कागज से ढका था, नीला नहीं होता है, क्योंकि इसमें प्रकाश के अभाव में स्टार्च का निर्माण नहीं हुआ, जबकि पत्ती का शेष भाग स्टार्च के कारण नीला हो जाता है। अतः प्रयोग से स्पष्ट है कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए प्रकाश आवश्यक है।
कार्बन डाइऑक्साइड गैस की आवश्यकता का प्रदर्शन एक बड़े एवं चौड़े मुँह की बोतल में KOH का घोल लेते हैं। एक मण्डरहित पादप की पत्ती को चौड़े मुँह की बोतल के अन्दर इस प्रकार लगाते हैं कि उसका आधा भाग बोतल में तथा आधा बोतल के बाहर रहता है।
इस उपकरण को 3-4 घण्टे तक धूप में रखकर आयोडीन परीक्षण करने पर पत्ती का वह भाग, जो बोतल के बाहर था, नीला पड़ जाता है, परन्तु बोतल के अन्दर के भाग पर आयोडीन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
इसका कारण यह है कि बोतल के अन्दर वाले भाग में प्रकाश-संश्लेषण द्वारा स्टार्च का निर्माण नहीं हुआ, क्योंकि बोतल में CO, उपलब्ध नहीं थी। इस बोतल की कार्बन डाइऑक्साइड KOH द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। इस प्रयोग से स्पष्ट है कि प्रकाश-संश्लेषण क्रिया के लिए CO2 आवश्यक है। इस प्रयोग को मोल का प्रयोग कहते हैं।
प्रश्न 5. प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक कारकों के नाम तथा इस क्रिया से सम्बन्धित रासायनिक समीकरण लिखिए तथा सिद्ध कीजिए कि इस क्रिया में ऑक्सीजन गैस निकलती है। (2016)
उत्तर-(i) प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक ये निम्नवत्
• प्रकाश (Light) प्रकाश-संश्लेषण की दर दृश्य प्रकाश की उपसि में अधिकतम होती है। प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया प्रकाश की ती बढ़ाने के साथ बढ़ती है, लेकिन तीव्रता बहुत अधिक बढ़ाने प्रकाश-संश्लेषण की दर अचानक कम हो जाती है, क्योंकि अ तीव्रता पर पर्णहरिम का सोलेराइजेशन हो जाता है।
•कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) वायुमण्डल में CO मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण की दर भी बढ़ जाती है।
•तापमान (Temperature) पादपों में प्रकाश-संश्लेषण की 10-35°C तापमान तक बढ़ती है। इससे कम अथवा अधिक ताप पर एन्जाइम का विकृतीकरण हो जाता है, जिससे प्रकाश-संश्लेषण दर कम हो जाती है।
•खनिज लवण (Minerals) खनिज लवणों; जैसे - Mg, Mn, I Mo, S की कमी से भी प्रकाश-संश्लेषण की दर कम हो जाती है। जल (Water) जल से प्राप्त हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड अपचयन करती है। अतः जल की मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण दर बढ़ जाती है।
(ii) प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले अन्तःकारक पत्ती संरचना, रन्ध्र की संरचना, स्थिति, संख्या और वितरण एवं खम्भ उ की कोशिकाओं में पर्णहरिम की मात्रा, आदि होते हैं।
प्रकाश-संश्लेषण में ऑक्सीजन की विमुक्ति का प्रदर्शन सर्वप्रथम एक बो बीकर लेकर उसमें गर्दन तक जल भर लेते हैं तथा उसमें कोई जलीय जैसे-हाइड्रिला (Hydrilla) रखते हैं। अब इस पर एक काँच की क (Funnel) को उल्टा करके ढक दिया जाता है। बीकर के जल में कुछ में सोडियम बाइकार्बोनेट मिलाते हैं, ताकि पादप को CO2 मिलती रहे।
अब जल से भरी एक परखनली (Test tube) को कीप की नली पर उल्टा र दिया जाता है और सम्पूर्ण उपकरण को सूर्य के प्रकाश में रख दिया जाता है। कुछ समय पश्चात् हाइड्रिला के पादप से सतत् रूप में एक गैस के बुल परखनली में इकट्ठा होना शुरु हो जाते हैं। गैस के परीक्षण के लिए परखनली मुँह पर अँगूठा लगाकर उसे कीप से हटा लेते हैं। अब इसे उलटकर एवं अँग हटाकर जलती हुई तीली को इसके सम्पर्क में लाते हैं। हमें दिखाई देता है, तीली तेजी से जलने लगती है। तीली का तेजी से जलना परखनली में 02 उपस्थिति को दर्शाता है। इस प्रयोग से यह सिद्ध होता है, कि प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में O, मुक्त होती है।
प्रश्न 6. मनुष्य के पाचन तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए। (2010, 09, 08, 0 अथवा मनुष्य की आहारनाल तथा उससे सम्बन्धित पाचक ग्रन्थियों व स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए । अग्न्याशयी रस का पाचन क कार्यिकी में क्या महत्त्व है?
अथवा मानव आहारनाल का वर्णन कीजिए।
उत्तर मनुष्य की आहारनाल मनुष्य की आहारनाल 8-10 मीटर लम्बी होती है प्रश् विभिन्न भागों में इसका व्यास अलग-अलग होता है। इसके निम्नलिखित भाग होते।
(i) मुख, मुखगुहा तथा ग्रसनी मुखगुहा ऊपरी तथा निचले जबड़े के मह स्थित होती है। व्यस्क में दोनों जबड़ों पर 16-16 दाँत लगे होते हैं। प्रत्ये जबड़े पर सामने दो जोड़ी कृन्तक, एक-एक रदनक, दो-दो अग्रचर्वण तथा उसके बाद तीन-तीन चर्वणक होते हैं। अग्रचर्वणक व चर्वणकों दाढ़ कहते हैं। मनुष्य में दाँतों के प्रकार, उनकी संख्या व उनके कार्य निः तालिका में दिए गए हैं
जिह्वा मुखगुहा के फर्श पर जिह्वा स्थित होती है, जो भोजन के स्वाद अनुभव कराती है। इसके अतिरिक्त भोजन चबाते समय उसमें लार मिलाने में सहायता करती है। यह चबाए गए भोजन को निगलने में मदद करती है।
मुखगुहा की दीवारों में लार ग्रन्थियाँ होती हैं। मुखगुहा के ऊपरी भाग को तालू कहते हैं। मुखगुहा का पिछला भाग ग्रसनी कहलाता है। ग्रसनी के अन्दर एक बड़ा छिद्र होता है। इसको निगलद्वार कहते हैं। इसके द्वारा ग्रासनली ग्रसनी में खुलती है। इसके पास ही श्वासनली का छिद्र व घांटीद्वार होता है।
(ii) भोजन नली या ग्रसिका या ग्रासनली यह लम्बी वलित नलिका होती है और श्वासनली के नीचे स्थित होती है। यह उपास्थिल, छल्ले युक्त होती है। यह तन्तुपट या डायफ्राम को भेदकर उदरगुहा में स्थित आमाशय (Stomach) में खुलती है।
(iii) आमाशय यह J-आकार की थैलीनुमा रचना होती है। इसकी लम्बाई लगभग 25-30 सेमी और चौड़ाई 7-10 सेमी होती है। इसका चौड़ा प्रारम्भिक भाग कार्डियक, मध्य भाग फण्डिक तथा अन्तिम संकरा भाग पाइलोरिक भाग कहलाता है। आमाशय की जठर ग्रन्थियों से जठर रस स्रावित होता है।
(iv) ग्रहणी यह आमाशय के साथ C-आकार की संरचना होती है। इसकी लम्बाई लगभग 25 सेमी होती है। पित्त नलिका तथा अग्न्याशय नलिका ग्रहणी के निचले भाग में खुलती है।
(v) छोटी आँत यह ग्रहणी के निचले भाग से प्रारम्भ होती है। यह नली सबसे अधिक लम्बी होती है। अत: यह कुण्डलित अवस्था में उदरगुहा में स्थित होती है। इसके चारों ओर बड़ी आँत होती है। क्षुद्रान्त्र की भित्ति में आँत्रीय ग्रन्थियाँ होती हैं, जिनसे पाचक आँत्रीय रस निकलता है। इसकी भित्ति में अनेक छोटे-छोटे अँगुली के आकार के रसांकुर होते हैं।
(vi) बड़ी आँत या वृहदान्त्र यह अधिक चौड़ी होती है। छोटी आँत से इसकी लम्बाई कम होती है। छोटी आँत एक छोटे-से थैले जैसे भाग में खुलती है, जिसका एक सिरा 7-10 सेमी लम्बी संकरी व बन्द नली के रूप में एक ओर निकला रहता है। इसे कृमिरूप परिशेषिका कहते हैं।
थैले के दूसरी ओर से लगभग 3 इंच चौड़ी नली, कोलन निकलती है, जो निकलने के बाद एक ओर गुहा के ऊपर की ओर उठती है, बाद समानान्तर होकर नीचे उतरती है तथा अन्त में मलाशय में खुल जाती है। (vii) मलाशय यह बड़ी आँत का ही अन्तिम भाग है। यह लगभग 7-8 सेमी लम्बा होता है। यहाँ अपशिष्ट भोजन एकत्रित होता है।
(viii) गुदा मलाशय का अन्तिम भाग छल्लेदार माँसपेशियों का बना होता है। इसके बाहर खुलने वाले छिद्र को गुदाद्वार (Anal aperture) कहते हैं।
मनुष्य के पाचन तन्त्र व ग्रन्थियों का चित्र अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 10 देखें।
पाचक रस भोजन के पाचन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पाचक रस निम्न प्रकार के होते हैं
(i) लार ये भोजन को निगलने में सहायक होती है तथा कार्बोहाइड्रेट पचाने में भी भाग लेती है। लार में उपस्थित टायलिन नामक ए मण्ड को शर्करा में बदल देता है।
(ii) जठर रस जठर (आमाशय) की ग्रन्थियों से जठर रस निकलता है।
जिसमें HCl, पेप्सिन, लाइपेज तथा रेनिन नामक एन्जाइम उपस्थित होते
(iii) पित्तरस तथा अग्न्याशयी रस ग्रहणी में अग्न्याशय से निकलने व अग्न्याशयी रस तथा यकृत से निकलने वाला पित्तरस आकर मिलते पित्तरस में कोई एन्जाइम नहीं होता है। यह भोजन के अम्लीय माध् को क्षारीय माध्यम में बदल देता है तथा पित्त लवण वसा इमल्सीकरण करते हैं। अग्न्याशयी रस में ट्रिप्सिन, लाइपेज, एमाइलॉफि आदि एन्जाइम उपस्थित होते हैं, जो क्षारीय माध्यम में ही सक्रिय होते हैं।
(iv) आँत रस इसके एन्जाइम अधपचे भोजन पर क्रिया करते हैं। आँत र निम्न एन्जाइम क्रिया करते हैं
(a) सुक्रेज यह शर्करा को ग्लूकोस में बदल देता है।
(b) लैक्टेज यह लैक्टोस शर्करा को ग्लूकोस में बदल देता है। (c) माल्टेज यह माल्टोस शर्करा को ग्लूकोस में बदल देता है। (d) इरेप्सिन यह शेष प्रोटीन तथा उसके अवयवों को अमीनो अम्लों बदल देता है।
प्रश्न 7. मानव में पाचन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए तथा यकृत के कार्यों का वर्णन कीजिए ।
(2018)
उत्तर मानव का पाचन तन्त्र का नामांकित चित्र अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 10 देखें।
यकृत के कार्य यकृत शरीर की सबसे बड़ी एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थि हैं। इसके महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नवत् हैं
(i) यकृत पित्तरस स्रावित करता है। यह क्षारीय तरल होता है। पित्तरस भोजन का माध्यम क्षारीय करता है। यह भोजन को सड़ने से बचाता है। हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है तथा आहारनाल में क्रमाकुंचन गति उत्पन्न करता है। पित्त वर्णक तथा लवणों को आहारनाल के माध्यम से उत्सर्जित करता है। पित्तरस वसा का इमल्सीकरण करता है।
(ii) आवश्यकता से अधिक ग्लूकोस को ग्लाइकोजन के रूप में संचित करता है। इसे ग्लाइकोजेनेसिस कहते हैं।
(iii) आवश्यकता पड़ने पर अमीनो अम्ल तथा वसीय अम्लों को शर्करा में बदल देता है। इसे ग्लाइकोनियोजेनेसिस कहते हैं।
(iv) यकृत कोशिकाएँ ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में बदल देती है। इसे ग्लाइकोजिनोलाइसिस कहते हैं।
(v) यकृत अनके अकार्बनिक पदार्थों का संचय करता है तथा यकृत वसा एवं विटामिन संश्लेषण में सहायता करता है।
(vi) यकृत कोशिकाएँ प्रोथ्रॉम्बिन तथा फाइब्रिनोजन रुधिर प्रोटीन का संश्लेषण करती है, जो चोट लगने पर रुधिर का थक्का बनाने का कार्य करती है। (vii) यकृत में यूरिया का संश्लेषण एवं विषैले पदार्थों को कम हानिकारक बनाने का कार्य करता है।
प्रश्न 8. मानव पाचन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए। पाचन क्रिया का वर्णन कीजिए।
(2020, 19)
अथवा मानव पाचन-तन्त्र का नामांकित चित्र बनाकर आमाशय तथा क्षुद्रान्त्र में होने वाली पाचन-क्रिया का वर्णन कीजिए। (2019)
उत्तर मानव पाचन तन्त्र चित्र अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 10 देखें।
मानव में पाचन की क्रियाविधि निम्न अंगों द्वारा पूर्ण होती है
1. मुखगुहा में पाचन मुखगुहा में स्टार्च पर टायलिन या एमाइलेज एन्जाइम कार्य करता है और स्टार्च को माल्टोस में अपघटित कर देता है।
मनुष्य की लार में उपस्थित लाइसोजाइम नामक एन्जाइम बैक्टीरिया को नष्ट करता है।
ग्रासनली में कोई पाचक एन्जाइम स्त्रावित नहीं होता। भोजन ग्रासनली से कार्डियक अवरोधक द्वारा होता हुआ आमाशय में पहुँचता है।
2. आमाशय में पाचन भोजन ग्रासनली से होकर आमाशय में प्रवेश करता है। आमाशय में प्रोटीन व वसा का पाचन प्रारम्भ हो जाता है, लेकिन कार्बोहाइड्रेट का पाचन नहीं होता ।
आमाशयी रस एवं HCl भोजन को जीवाणुरहित एवं अम्लीय माध्यम प्रदान करता है। पेप्सिन, प्रोटीन का पाचन करके उन्हें पेप्टोन्स में परिवर्तित कर देता है। रेनिन, दुग्ध को दही में परिवर्तित करता है। यह आंशिक पचित भोजन काइम कहलाता है।
3. छोटी आँत में पाचन काइम ग्रहणी में पहुँचता है। छोटी आँत में पित्त, अग्न्याशय रस तथा आँत रस आकर मिलते हैं तथा भोजन का पाचन पूर्ण करते हैं। पित्त व अग्न्याशय रस आँत के pH को क्षारीय करते हैं। भोजन में पित्तरस मिलता है, जो वसा को छोटी गोलियों में तोड़ देता है।
पित्त रस में एन्जाइम नहीं पाए जाते हैं। अग्न्याशयी रस पूर्ण पाचक रस होता है। इसमें अनेक एन्जाइम्स पाए जाते हैं।
ट्रिप्सिन एवं काइमोट्रिप्सिन ये पेप्सिन के समान प्रोटीन का पाचन करते हैं, परन्तु ये निष्क्रिय अवस्था में पाए जाते हैं। ग्रहणी में आन्त्रीय रस में उपस्थित एन्टीरोकाइनेज के द्वारा ये एन्जाइम्स सक्रिय एन्जाइमों में बदल जाते हैं।
लाइपेज वसा को वसीय अम्लों एवं ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता है। भोजन इलियम में पहुँचकर आँत रस से मिलता है। अब भोजन काइल कहलाता है।
4. बड़ी आँत में पाचन बड़ी आँत में उपस्थित चूषक कोशिकाएँ श्लेष्मा का स्रावण करती हैं, जिससे मल चिकना हो जाता है। यहाँ अपचे भोजन से जल का अवशोषण होता है, जिससे मल गाढ़ा हो जाता है। शाकाहारी जन्तुओं के भोजन में सेलुलोस प्रचुर मात्रा में होता है। सेलुलोस का पाचन केवल सीकम में ही होता है, क्योंकि इसमें सहजीवी जीवाणु रहते हैं, जो सेलुलोस को शर्करा में बदल देते हैं।
सैलोबायोपैरस एवं क्लॉस्ट्रिडियम जीवाणु तथा एन्टोडोनियम नामक प्रोटोजोआ सीकम में सेलुलोस के पाचन में सहायक हैं।
5. अवशोषण एवं स्वांगीकरण मुखगुहा व ग्रासनली में सामान्यतया कोई अवशोषण नहीं होता है। आमाशय में एल्कोहॉल, साधारण लवण तथा अण्डे के एल्ब्युमिन का अवशोषण होता है। छोटी आँत में सभी प्रकार के पचित भोजन का अवशोषण निष्क्रिय, सक्रिय तथा सुसाध्य परिवहन द्वारा भी होता है। ग्लूकोस, अमीनो अम्ल तथा सोडियम का सक्रिय अवशोषण होता है। अमीनो अम्ल का अवशोषण Na+ के साथ सहपरिवहन द्वारा भी होता है।
इलियम की आन्तरिक सतह पर अंगुलीनुमा उभार पाए जाते हैं, जिन्हें रसांकुर या विलाई कहते हैं। प्रत्येक विलाई पर रुधिर केशिकाएँ और लिम्फ वाहिनियों का जाल बिछा होता है, जो मुख्यतया वसा के अवशोषण में सहायता करता है।
6. अपचित भोजन का बहिष्करण बड़ी आँत भोजन का अवशोषण नहीं कर सकती, लेकिन जल का अवशोषण करती है। शेष बचा हुआ ठोस वर्ज्य पदार्थ विष्ठा कहलाता है और मलाशय में एकत्र हो जाता है। यह विष्ठा मलद्वार के द्वारा समय-समय पर बाहर निकाल दिया जाता है।
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