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जैव प्रक्रम ( विज्ञान ) लघु उत्तरीय प्रश्न Class 10th Science Question Answer 2023- Jaiv Prakram Question Answer up board Exam 2023

 


लघु उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न 1. जैव क्रियाएँ किसे कहते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए। ये कितने प्रकार की होती है? (2015)


उत्तर- समस्त जीवधारियों में उसकी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शरीर में कुछ संश्लेषणात्मक एवं विश्लेषणात्मक क्रियाएँ सदैव चलती रहती हैं, जो जीव को जीवित बनाए रखने के लिए आवश्यक होती हैं, इन्हें जैविक क्रियाएँ कहते हैं; जैसे–पोषण, श्वसन, परिवहन, उत्सर्जन, वृद्धि, जनन, आदि। जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण विशेष प्रकार से होता है। जीवधारी विभिन्न प्रकार से इन क्रियाओं को सम्पादित करते हैं, फिर भी इनमें मौलिक समानता पाई जाती है। जन्तुओं और पौधों में होने वाली समस्त जैविक क्रियाएँ मूलतया समान होती हैं। निम्न श्रेणी के जीवधारियों में जैविक क्रियाओं का संचालन सरल और उच्च श्रेणी के जीवधारियों में जैविक क्रियाओं का संचालन जटिल होता है।

जीवों में होने वाली समस्त जैव-रासायनिक अभिक्रियाओं को दो समूहों में बाँट लेते हैं

(i) अपचयी क्रियाएँ इन जैव क्रियाओं में जटिल कार्बनिक पदार्थ सरल कार्बनिक पदार्थों में विखण्डित हो जाते हैं; जैसे- पाचन, श्वसन, आदि । (ii) उपचयी क्रियाएँ इन जैव प्रक्रियाओं में सरल कार्बनिक पदार्थों से जटिल कार्बनिक पदार्थों का सश्लेषण होता है; जैसे- पौधों में प्रकाश-संश्लेषण, जन्तुओं में प्रोटीन, वसा, न्यूक्लिक अम्ल, आदि का संश्लेषण।


प्रश्न 2. पोषण क्या है? स्वपोषी पोषण की परिभाषा लिखिए। यह कितने का होता है, प्रत्येक का एक-एक उदाहरण भी लिखिए?

अथवा स्वपोषी पोषण से आप क्या समझते हैं? प्रकाश-संश्लेशण में इसकी भूमिका बताइए ।


उत्तर -जीवों द्वारा भोजन तथा अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं।स्वपोषण का शाब्दिक अर्थ है स्वयं को पोषित करना, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और जल (H2O) से प्रकाश तथा पर्णहरिम की उपस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा अपने भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं कर लेते हैं। इस प्रकार वे जीव, जो अपने भोजन का निर्माण स्वयं करते हैं, स्वपोषी कहलाते हैं| 

स्वपोषी पोषण दो प्रकार का होता है


(i) प्रकाश-संश्लेषी अधिकांश पौधे तथा कुछ जीवाणु पर्णहरित तथा प्रकाश की उपस्थिति में वायुमण्डल से CO2 तथा मृदा से जल (H2O) भोजन का निर्माण करते हैं। इस क्रिया में ऊर्जा का उपयोग होता है।

(ii) रसायन-संश्लेषी कुछ जीवाणु जल की अपेक्षा विभिन्न प्रकार रसायनों की ऊर्जा का उपयोग कर खाद्य संश्लेषण करते हैं। यह कि पर्णहरित की अनुपस्थिति में होती है; जैसे-नाइट्रीकारक जीवा सल्फर जीवाणु, आदि ।


प्रश्न 3. प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्ले कीजिए । उत्तर प्रकाश-संश्लेषण की दर को बाह्य और अन्तः कारक प्रभावित करते हैं। कारक निम्न हैं


(i) प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक ये निम्नवत्


 • प्रकाश (Light) प्रकाश-संश्लेषण की दर दृश्य प्रकाश की उपसि में अधिकतम होती है। प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया प्रकाश की ती बढ़ाने के साथ बढ़ती है, लेकिन तीव्रता बहुत अधिक बढ़ाने प्रकाश-संश्लेषण की दर अचानक कम हो जाती है, क्योंकि अ तीव्रता पर पर्णहरिम का सोलेराइजेशन हो जाता है।

कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) वायुमण्डल में CO मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण की दर भी बढ़ जाती है। 

तापमान (Temperature) पादपों में प्रकाश-संश्लेषण की 10-35°C तापमान तक बढ़ती है। इससे कम अथवा अधिक ताप पर एन्जाइम का विकृतीकरण हो जाता है, जिससे प्रकाश-संश्लेषण दर कम हो जाती है।

खनिज लवण (Minerals) खनिज लवणों; जैसे - Mg, Mn, I Mo, S की कमी से भी प्रकाश-संश्लेषण की दर कम हो जाती है। जल (Water) जल से प्राप्त हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड अपचयन करती है। अतः जल की मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण दर बढ़ जाती है।


(ii) प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले अन्तःकारक पत्ती संरचना, रन्ध्र की संरचना, स्थिति, संख्या और वितरण एवं खम्भ उ की कोशिकाओं में पर्णहरिम की मात्रा, आदि होते हैं।


प्रश्न 4. नामांकित चित्र की सहायता से दिखाइए कि प्रकाश-संश्लेषण लिए पर्णहरिम आवश्यक है।


उत्तर प्रकाश-संश्लेषण में पर्णहरिम की आवश्यकता का प्रदर्शन इस प्रय के लिए कोई चित्तीदार पादप; जैसे- क्रोटॉन (Croton), कोलि


यस (Coleu आदि लेते हैं, जिनकी पत्तियों पर हरे रंग के धब्बे पाए जाते हैं अर्थात् केवल इन स्थानों के अन्दर पर्णहरिम होता है। इसे लगभग 48-72 घण्टे अन्धेरे में रख मण्डरहित कर लेते हैं। कुछ समय (लगभग 4-5 घण्टे बाद सूर्य के प्रकाश रखने के बाद यदि पादप की एक पत्ती का मण्ड परीक्षण करते हैं, तो केवल उन स्थानों पर मण्ड मिलेगा, जिन स्थानों पर हरा रंग होता है। इस प्रक्रिया में पर्णहा स्थानों को मण्ड परीक्षण से पूर्व ही चिन्हित करना आवश्यक होता है।



प्रश्न 5. पर्णरन्ध्रों (स्टोमेटा) के खुलने तथा बन्द होने की क्रियाविधि का

वर्णन कीजिए।  (2012)

अथवा रन्ध्र (स्टोमेटा) का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए । (2013)

 अथवा बताइए कि द्वार कोशिकाएँ किस प्रकार रन्ध्रों के खुलने तथा बन्द होने का नियमन करती हैं? (NCERT Exemplar) 

अथवा रन्ध्र का नामांकित चित्र बनाइए तथा द्वार (गार्ड) कोशिकाओं का वर्णन कीजिए।(2015)


उत्तर-रन्ध्र की संरचना रन्ध्र मुख्य रूप से पत्तियों की बाह्यत्वचा पर पाए जाते हैं। प्रत्येक रन्ध्र में दो अर्द्धचन्द्राकार सेम के बीज के आकार की द्वार कोशिकाएँ (Guard cells) तथा मध्य में एक रन्ध्रीय गुहा (Stomatal cavity) पाई जाती है। द्वार कोशिकाओं की बाहरी भित्ति पतली तथा आन्तरिक भित्ति मोटी होती है। इसमें हरितलवक पाए जाते हैं।

पर्णरन्ध्र के खुलने तथा बन्द होने की क्रियाविधि रन्ध्रीय गति रक्षक कोशिकाओं की आशूनता पर निर्भर करती है । रक्षक कोशिकाओं के आशून होने पर रन्ध्र खुल जाते हैं और श्लथ (Flaccid) दशा में रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। दिन के समय रक्षक कोशिकाओं की CO, प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में प्रयुक्त हो जाने के कारण इनका माध्यम क्षारीय हो जाता है। इससे फॉस्फोरायलेज एंजाइम के सक्रियण के कारण रक्षक कोशिकाओं में संचित स्टार्च ग्लूकोस में बदल जाता है। फलस्वरूप रक्षक कोशिकाओं की सान्द्रता बढ़ जाती है। ये समीपवर्ती कोशिकाओं से जल ग्रहण करके आशून (स्फीत) हो जाती है। रक्षक कोशिका की भीतरी मोटी सतह के भीतर की ओर खिंचाव आने से रन्ध्र खुल जाते हैं। रात्रि में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया नहीं होती है। अतः रक्षक कोशिकाओं में श्वसन के कारण CO2 की मात्रा बढ़ जाने से इनका माध्यम अम्लीय हो जाता है। इसके फलस्वरूप रक्षक कोशिकाओं का ग्लूकोस स्टार्च में बदल जाता है। इसके कारण रक्षक कोशिकाओं की सान्द्रता में कमी हो जाती है। रक्षक कोशिकाओं से जल समीपवर्ती कोशिकाओं में विसरित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप रक्षक कोशिकाएँ श्लथ स्थिति में आ जाती है और रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।



पादपों में रन्ध्र की उपयोगिता

(i) वाष्पोत्सर्जन में सहायक,

(ii) प्रकाश-संश्लेषण तथा श्वसन क्रिया (गैसीय विनिमय) में सहायक । 


प्रश्न 6. सजीव तथा निर्जीव में अन्तर स्पष्ट कीजिए। पौधे सजीव हैं,

क्यों? स्पष्ट कीजिए ।





पौधों में सजीवों के समान लक्षण शारीरिक संगठन, वृद्धि, पोषण, गति, उत्तेजनशीलता, उत्सर्जन, कोशिका विभाजन, जनन, आदि क्रियाएँ होती हैं, इसलिए ये सजीव कहलाते हैं। इनमें सजीवों का प्रमुख लक्षण जीवद्रव्य भी उपस्थित होता है। 


प्रश्न 7. मनुष्य के दन्तविन्यास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (2010, 08)

अथवा मनुष्य के दाँतों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।(2016)

अथवा मनुष्य में पाए जाने वाले दाँतों के प्रकार तथा उनके कार्यों का वर्णन कीजिए | 


उत्तर मनुष्य का दन्तविन्यास भोजन को काटने तथा चबाने के लिए मनुष्य के दोनों जबड़ों में दाँत पाए जाते हैं। मनुष्य के दाँत गर्तदन्ती (Thecodont), द्विबारदन्ती (Diphyodont) तथा विषमदन्ती (Heterodont) होते हैं। मनुष्य में निम्नलिखित चार प्रकार के दाँत पाए जाते हैं


(i) कृन्तक (Incisors) यह चार ऊपरी जबड़े में तथा चार निचले जबड़े में सामने की ओर स्थित होते हैं। ये भोजन को कुतरने या काटने के काम आते हैं। 

(ii) रदनक (Canines) इनके शिखर नुकीले होते हैं। ये भोजन को चीरने-फाड़ने का काम करते हैं। ऊपरी और निचले जबड़े में दो-दो रदनक होते हैं। ये मांसभक्षियों में अधिक विकसित होते हैं।

 (iii) अग्रचर्वणक (Premolars) इनकी संख्या ऊपरी तथा निचले जबड़े में चार-चार होती है। ये भोजन को चबाने का कार्य करते हैं। 

(iv) चर्वणक (Molars) ये ऊपरी तथा निचले जबड़े में छः-छः होते हैं। इनका शिखर अधिक चौड़ा व उभारयुक्त होता है। ये भी भोजन को पीसने का कार्य करते हैं।


प्रश्न 8. मनुष्य की लार ग्रन्थियों के नाम लिखिए। ये कहाँ स्थित होती हैं और कहाँ खुलती हैं? 
(2010)


उत्तर लार ग्रन्थियाँ मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पृथक् वाहिनियों द्वारा मुखगुहा में खुलती हैं, जो निम्नवत् हैं

(i) कर्णपूर्व या पैरोटिड ग्रन्थियाँ ये कर्ण पल्लवों के नीचे स्थित होती हैं तथा स्टेन्सन (Stensen) की नलिका के द्वारा मुखगुहा में खुलती हैं।

(ii) अधोहनु या सबमैक्सिलरी ग्रन्थियाँ ये निचले जबड़े के पश्च भाग पर स्थित होती हैं तथा वॉरटन (Whorton) की नलिका के द्वारा मुखगुहा में खुलती हैं।

(iii) अधोजिह्वा या सबलिंग्वल ग्रन्थियाँ ये जिह्वा के नीचे स्थित सबसे छोटे आकार की ग्रन्थियाँ हैं। ये रिविनस (Rivinus) की नलिकाओं के द्वारा मुखगुहा में खुलती हैं।


प्रश्न 9. आमाशय किसे कहते हैं? इसके तीन प्रमुख कार्य लिखिए। (2014) 

अथवा आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है? (NCERT Intext)


उत्तर आमाशय उदर गुहा में स्थित J-आकार की थैलेनुमा संरचना है। यह आहारनाल का सबसे चौड़ा भाग है, जिसकी लम्बाई लगभग 24 सेमी तथा चौड़ाई 10 सेमी होती है।

आमाशय के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

(i) आमाशय में पेशीय क्रमाकुंचन गति के कारण भोजन लुगदी (Chyme) में रूपान्तरित होता है।

(ii) जठर रस में उपस्थित HCl भोजन को सड़ने से बचाता है तथा जीवाणुओं को नष्ट करता है।

(iii) आमाशय से स्रावित जठर रस में उपस्थित पेप्सिन, रेनिन तथा लाइपेज एन्जाइम क्रमशः प्रोटीन, दुग्ध तथा वसा का पाचन करते हैं।


प्रश्न 10. आहारनाल से सम्बन्धित पाचक ग्रन्थियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए और उनके मुख्य कार्य बताइए।

(2015)


उत्तर पाचक ग्रन्थियाँ आहारनाल में यकृत तथा अग्न्याशय मुख्य पाचक ग्रन्थियाँ होती हैं।

यकृत यह शरीर की सबसे बड़ी पाचक ग्रन्थि है। इसका भार लगभग 1500 ग्राम होता है। इसके ऊपर स्थित एक छोटी थैलीनुमा संरचना पित्ताशय (Gall bladder) कहलाती है, जिसमें पित्त रस एकत्रित होता है। यकृत के कार्य

•पित्त रस का स्रावण करना।

•यूरिया का संश्लेषण करना।

•हिपेरिन प्रतिस्कन्दन कारक का स्रावण।

• ग्लाइकोजन का संचय करना ।


अग्न्याशय यकृत के बाद यह शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रन्थि है। यह लगभग 12-15 सेमी लंबी तथा 'J' के आकार की होती है। यह उदरगुहा में आमाशय व शेषांत्र के बीच स्थित होती है। यह एक मिश्रित ग्रन्थि (Mixed gland) है। इसका बाह्यस्रावी भाग क्षारीय अग्न्याशयी रस का स्रावण करता है तथा अन्तःस्रावी भाग हॉर्मोन्स का स्रावण करता है।

अग्न्याशय के कार्य निम्नलिखित हैं

(i) इसके बाह्यस्रावी भाग से अग्न्याशयी रस का स्रावण होता है, जिसमें तीन प्रमुख एन्जाइम्स; जैसे–ट्रिप्सिन, एमाइलॉप्सिन तथा स्टीएप्सिन उपस्थित होते हैं।

(ii) अन्तःस्रावी भाग से इन्सुलिन तथा ग्लूकैगॉन का स्रावण होता है, जो रुधिर में शर्करा की मात्रा का नियमन करते हैं।


प्रश्न 11. अग्न्याशय की संरचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए। (2009, 05) अथवा अग्न्याशय के अन्तःस्रावी भाग में स्थित एल्फा तथा बीटा कोशिकाओं से निकलने वाले हॉर्मोन्स के नाम तथा कार्य का वर्णन कीजिए। (2006)

अथवा अग्न्याशय द्वारा स्रावित दो पाचक एन्जाइम के नाम एवं कार्य लिखिए | (2018)

अथवा अग्न्याशय की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए । (2010) 


उत्तर संरचना की दृष्टि से अग्न्याशय छोटे-छोटे पिण्डकों से बना होता है। इन पिण्डकों की कोशिकाएँ घनाकार तथा स्रावी होती हैं। पिण्डकों के मध्य में लैंगरहैन्स की द्वीपिकाएँ समूह के रूप में पाई जाती हैं।

यह एक मिश्रित ग्रन्थि है। इसके दो भाग होते हैं 

(ii) अन्तःस्रावी भाग

(i) बहिःस्रावी भाग व

इसका बहि:स्रावी भाग व अग्न्याशयी रस स्रावित करता है। यह पूर्ण पाचक रस है। इसमें प्रोटीन पाचक ट्रिप्सिन तथा काइमोट्रिप्सिन, कार्बोहाइड्रेट पाचक एमाइलेज तथा वसा पाचक अग्न्याशयी लाइपेज एन्जाइम होते हैं। अतः अग्न्याशय के निष्क्रिय हो जाने पर भोजन का पूर्ण पाचन नहीं हो सकेगा।



अग्न्याशय में स्थित अन्तःस्रावी भाग की लैंगरहैन्स की द्वीपिकाओं की B-कोशिकाओं से इन्सुलिन हॉर्मोन तथा a-कोशिकाओं से ग्लूकैगॉन हॉर्मोन स्रावित होता है। इन्सुलिन आवश्यकता से अधिक शर्करा (ग्लूकोस) को ग्लाइकोजन में और ग्लूकैगॉन हॉर्मोन ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में बदलने का कार्य करते हैं। अतः अग्न्याशय के निष्क्रिय या नष्ट हो जाने से शरीर में शर्करा का सन्तुलन बिगड़ जाता है।



प्रश्न 12. मुख से लेकर आमाशय तक होने वाली पाचन क्रिया को प्रभाि

करने वाले एन्जाइमों के कार्यों का उल्लेख कीजिए।

अथवा पाचक एन्जाइमों का क्या कार्य है? (NCERT Exemplar]


उत्तर मुख से लेकर आमाशय तक अनेक एन्जाइम स्रावित होते हैं, जो भोजन

पाचन में सहायक होते हैं।

मुख में कार्बोहाइड्रेट का पाचन होता है। लार में - एमाइलेज या टाइ (c-amylase or Ptyalin) नामक पाचक एन्जाइम होता है, जो मण्ड को में परिवर्तित कर देता है। इसमें लाइसोजाइम (Lysozyme) भी होता प्रतिजीवाणु कारक होता है।

आमाशय के मध्य भाग में फण्डिक ग्रन्थियाँ उपस्थित होती है। ये स्रावित करती है, जिसमें पेप्सिन (Pepsin), रेनिन (Renin) नामक एन्जाइम) हैं। ये श्लेष्म तथा गैस्ट्रिन (Gastrin) नामक हॉर्मोन भी स्त्रावित करती है। ये । अम्ल का भी स्रावण करती है, जोकि जठर रस को अम्लीय मा (pH 1.5-2.5) प्रदान करता है एवं निष्क्रिय पेप्सिनोजन (Pepsinogen) को स पेप्सिन (Pepsin) में बदल देता है। रेनिन दुग्ध प्रोटीन का पाचन करता है। न पेप्सिन प्रोटीन का पाचन करता है तथा लाइपेज वसा का पाचन करता है।


 प्रश्न 13. पाचक रस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

अथवा मनुष्य में पाए जाने वाले पाचक रसों के कार्यों का वर्णन कीजिए।

अथवा पित्तरस भोजन के पाचन में किस प्रकार सहायता करता है?


उत्तर पाचक रस भोजन के पाचन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पाचक रस निम्न प्रकार के होते हैं

(i) लार ये भोजन को निगलने में सहायक होती है तथा कार्बोहाइड्रेट पचाने में भी भाग लेती है। लार में उपस्थित टायलिन नामक ए मण्ड को शर्करा में बदल देता है।

(ii) जठर रस जठर (आमाशय) की ग्रन्थियों से जठर रस निकलता है।

जिसमें HCl, पेप्सिन, लाइपेज तथा रेनिन नामक एन्जाइम उपस्थित होते 

(iii) पित्तरस तथा अग्न्याशयी रस ग्रहणी में अग्न्याशय से निकलने व अग्न्याशयी रस तथा यकृत से निकलने वाला पित्तरस आकर मिलते पित्तरस में कोई एन्जाइम नहीं होता है। यह भोजन के अम्लीय माध् को क्षारीय माध्यम में बदल देता है तथा पित्त लवण वसा इमल्सीकरण करते हैं। अग्न्याशयी रस में ट्रिप्सिन, लाइपेज, एमाइलॉफि आदि एन्जाइम उपस्थित होते हैं, जो क्षारीय माध्यम में ही सक्रिय होते हैं।

 (iv) आँत रस इसके एन्जाइम अधपचे भोजन पर क्रिया करते हैं। आँत र निम्न एन्जाइम क्रिया करते हैं

(a) सुक्रेज यह शर्करा को ग्लूकोस में बदल देता है।

(b) लैक्टेज यह लैक्टोस शर्करा को ग्लूकोस में बदल देता है। (c) माल्टेज यह माल्टोस शर्करा को ग्लूकोस में बदल देता है। (d) इरेप्सिन यह शेष प्रोटीन तथा उसके अवयवों को अमीनो अम्लों बदल देता है।



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